कौन हैं शेर सिंह राणा ?
आओ जानते हैं कोन है शेर सिंह राणा :-ये कहानी है शेर सिंह राणा की जो किसी फ़िल्मी कहानी से कम न हैं |
1. शेर सिंह राणा उर्फ़ पंकज सिंह है, इनका जन्म 17 मई 1976 मैं तब के उतरप्रदेश यानि आज के उतराखंड के रूडकी में हुआ था, जब शेर सिंह राना जब 4 साल के थे (2.) तब चम्बल में डंका बजता था कुखियात डकेत फूलन देवी का, 1980 के दशक की सुरवात में चम्बल बिगडो में फूलन देवी देसियत का दूसरा नाम थी फूलन देवी को बैंडिट क्वीन (10 वीं सुंदरी) के नाम से भी जाना जाता था | उसने मेहमई गाँव में 22 राजपूतो को लाइन में खड़ा कर के गोली मार दी थी | (3) 25 जुलाई 2001 को शेर सिंह राना फूलन देवी से मिलने आया, और गोली मार कर हत्या कर दी, फूलन की हत्या के बाद राणा ने कहा की उसने मेहमई कांड में मेंरे अपने राजपूत भाइयो का बदला लिया है |यह से शुरू होती हैं शेर सिंह राणा की कहानी ;- फूलन देवी की हत्या के 2 दिन बाद शेर सिंह राणा पर
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| फूलन देवी |
केस चलने तक पुलिस ने तिहाड़ जेल में भेज दिया तिहाड़ जैल में करीब ढाई साल रहने के दोरान राणा ने कहा था की तिहाड़ की सलाखे उसे ज्यादा दिनों तक नही रोक पायेंगी, और हुआ भी ऐसा, समय में करवट ली और लगभग 3 साल बाद 17 फरवरी 2004 को राणा फ़िल्मी अंदाज में तिहाड़ जेल से फरार हो गया, तिहाड़ जेसे सुरक्षित जेल से किसी केदी का फरार हो जाना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात थी, इस लिए राणा सुर्खियों में आ गया, उस दिन उत्तराखण्ड पुलिस की वर्दी में 3 अज्ञात लोग तिहाड़ जेल पहुचे थे, तिहाड़ जेल के अधिकारियो के कहा की वो एक कैश के सिलसिले में हरिद्वार की एक अदालत में पेसी के लिए शेर सिंह राणा को लेने आये हैं, वह अपने साथ हत्कड़ी और राणा की पेसी का आर्डर भी ले कर आये थे, तिहाड़ जेल के अधिकारियो ने आर्डर की कॉपी देखी, और फिर शेर सिंह राणा को फर्जी पुलिस वालो यानि की राणा के साथियों को सोप दिया, जो राणा को वह से ले कर चले गये, बाद में मामले का खुलासा हुआ तो तिहाड़ जेल के साथ-साथ देश में भी हडकम मच गया था, हलाकि 2 साल बाद 17 मई 2006 को राणा को कोलकाता में फिर सेगिरफ्तार कर लिया गया, अब बात आती हैं शेर सिंह राणा की रियल कहानी पर |
प्रथ्वीराज चौहान:- भारत के वीर योद्धा प्रथ्विराज चौहान (हिन्दुस्थान के आखरी वीर सम्राट) की समादी गजनी में होने की जानकारी तालिबान सरकार में जसवंत सिंह (तत्कालीन विदेश मंत्री) को दी, अफगानिस्तान की परम्परा हैं कि जो लोग मोहमद गोरी की कब्र देखने जाते है, वो पहले प्रथ्विराज चौहान की समादी का अपमान जूतों से करना पड़ता है, यह जानकारी शेर सिंह राणा को पता चली तो उन्होंने प्रण लिया की वो उनकी समादी के विशेष सम्मान के साथ भारत लायेंगे, 1-पहले राणा ने रांची से फर्जी पासपोर्ट बनाया और कोलकाता पहुच गया, और फिर बांग्लादेश का वीजा बनवाया और बांग्लादेश का वीजा बनवाया और पहुच गया बंगलादेश, फिर फर्जी दस्तावेजो से यूनिवर्सिटी में दाखिला करवाया
और उसी दोरान अफगानिस्थान का वीजा भी बनवाया, और पहुच गये अफगानिस्थान फिर काबुल और कंधार से होते हुवे गजनी पहुचे जहा प्रथ्विराज चौहान की समादी थी फिर एक दिन रुक कर राणा ने
प्रथ्विराज चौहान की समादी को निकलने की प्लानिंग की, इस दोरान राणा को तालिबानियों के गड में तालिबानियों से डर था लेकिन राणा ने साहस व् सुझबुझ से रात में प्रथ्विराज चौहान की समादी के अवशेस निकाल कर भारत आ गये, व् माँ की मदद से |
प्रथ्विराज चौहान की समादी को निकलने की प्लानिंग की, इस दोरान राणा को तालिबानियों के गड में तालिबानियों से डर था लेकिन राणा ने साहस व् सुझबुझ से रात में प्रथ्विराज चौहान की समादी के अवशेस निकाल कर भारत आ गये, व् माँ की मदद से |
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| प्रथ्वीराज चौहान की समाधि |
प्रथ्विराज चौहान की समादी को स्थापित कर मंदिर बनवाया, हालाकि यह काम उन्होंने जेल से फरार हो कर किया व् इस काम में 3 माह का समय लगा | कुछ दिन बार पुलिस ने राणा को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल में डाल दिया , फिर उन्होंने जेल में रह कर जेल डायरी (तिहाड़ से काबुल-कंधार तक), नाम से किताब लिखी, व् एडं ऑफ़ बैंडिट क्वीन नामक फिल्म भी शेर सिंह राणा के जीवन पर आधारित हैं |








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