क्यों की जाती महांकाल की आरती भस्म से ?
महांकाल भस्म आरती:- पौराणिक कथाओ में बताया गया है की प्राचीन काल में दूषण नाम के एक राक्षस की वजह से पूरी उज्जैन में हाहाकार मचा था | नगर वासियों को इस राक्षस से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने उसका वध कर दिया |और फिर नगर वासी भोले बाबा को यही बस जाने का आग्रह करने लगे | तब से भगवान शिव महांकाल के रूप में वह बस गए | शिव ने दूषण को भस्म किया और फिर उसकी राख से अपना श्रंगार किया और तभी से महांकाल की भस्म आरती की जाने लगी |
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2. कुछ लोगो का ये भी मान्यता है कि, जब माता सती अपने पति शिव के अपमान के चलते अपन पिता दक्ष के यज्ञ में कूदकर जलकर मर गई तो इस घटना से शिवजी बहुत आहत हो गए। उन्होंने राजा दक्ष का नाश करने के बाद उस जलती अग्नि से अपनी पत्नी सती के शव को निकाला और वह क्रोधित, दुखी एवं बैचेन होकर प्रलाप करते हुए धरती पर भ्रमण करने लगे। जहां जहां माता के शरीर के अंग गिरे वहां वहां शक्तिपीठ निर्मित हो गए। उनके इस दुख के कारण सृष्टि खतरे में पड़ गई जिसके चलते भगवान विष्णु ने उनके शरीर को अपनी माया से भस्म में परिवर्तित कर दिया। फिर भी शिव का प्रलाप और दुख नहीं मिटा तो शिव ने अपनी प्रिया की निशानी के तौर पर उस भस्म को अपने शरीर पर मल लिया। कहते हैं इसीलिए शिवजी भस्म धारण करते हैं, लेकिन इसके और भी कई कारण हैं।
महिलाओ के लिए विशेष नियम :- प्रतिदिन होने वाली इस भस्म आरती में महिलाओ के लिए कुछ विशेष नियम है जिस वक्त शिवलिंग पर भस्म चढ़ती है उस वक्त महिलाओं को घूँघट करने को कहा जाता है मान्यता है उस समय भगवान शिव निराकार स्वरूप में होते है इसस्वरूप के दर्शन करने की अनुमती महिलाओ नहीं होती है |
वैसे कुछ सख्त नियम पुरषों के लिए भी हैं. वहां आए सभी पुरषों को सूती की धोती पहनना जरूरी है. इस मंदिर में कोई आम व्यक्ति खुद शिवलिंग पर भस्म अर्पित नही कर सकता. ये अधिकार वहां के सिर्फ पुजारियों के पास है |
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